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उत्तर प्रदेश के लोकगीत

रसिया लोकगीत

उत्तर प्रदेश के ब्रजभूमि क्षेत्र की गायन परम्परा है।

सोहर लोकगीत

इस लोकगीत में जीवन चक्र के प्रदर्शन संदर्भित किया जाता है इसलिए इसे बच्चे के जन्म की ख़ुशी में गया जाता है।

कहारवा

यह विवाह समारोह के समय कहर जाति द्वारा गाया जाता है।

चैता

यह लोकगीत प्रमुखतः फाल्गुन पूर्णिमा से चैत्र पूर्णिमा के दौरान गाये जाते हैं।

चानाय्नी

एक प्रकार का नृत्य संगीत।

नौका

झक्कड़ यह नाई समुदाय में बहुत लोकप्रिय है और नाई लोकगीत के नाम से भी जाना जाता है।

आल्हा

इस लोकगीत में आल्हा-उदल की वीरता का वर्णन किया जाता है।

बनजारा और न्जावा

यह लोक संगीत रात के दौरान तेली समुदाय द्वारा गाया जाता है।

कजली या कजरी

यह महिलाओं द्वारा सावन के महीने में गाया जाता है। यह मिर्जापुर क्षेत्र में लोकप्रिय है। यह अर्द्ध शास्त्रीय गायन के रूप में भी विकसित हुआ है और इसकी गायन शैली बनारस घराना से मिलती है।

जरेवा और सदावजरा

सारंगा इस तरह के लोक संगीत लोक पत्थरों के लिए गाया जाता है।

ढोला

उत्तर प्रदेश के आगरा तथा मेरठ में प्रचलित है।

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